Wednesday 16 October 2013

काश...

कल, पल सा आया, यूँ आया और गुज़रा,
बज कर अचानक घुँगरू सा बिखरा;
आज तुम अगर, कल देख पाते,
मेरे साथ कुछ दूर तुम भी आते.

अक्सर ये सोचा अजीब हैं ये पल,
वक़्त के साथ हम भी जाते हैं जल;
उन्ही पलों को समेटे हम चलते जाते,
काश कुछ दूर तुम भी आते.

बस रिश्तों का धोका, बिखरती ये यादें,
समेटते कभी हम, वो लम्हें, वो बातें;
अगर समझ आता, तो ना वक़्त यूँ गावते,
अपने साथ हम तुमको ले आते.

आज मैं वो चेहरा सभी को दिखाता,
मेरा वो चेहरा, कभी ना पाता;
उन लम्हों के कारवाँ, कभी ना भुलाते,
अगर मेरे साथ दो कदम चल पाते.

तुम साथ चलते तो शायद सम्हल जाते,
उस सदा से यूँ ठोकर हम शायद ना खाते;
तुम रोक भी लेते तो एक पल रुक जाते,
काश मेरे साथ, तुम चले आते...